उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में कमजोर पड़ा कारोबार, छह जिलों में सीडी रेशो 40 फीसदी से भी नीचे

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में कमजोर पड़ा कारोबार, छह जिलों में सीडी रेशो 40 फीसदी से भी नीचे

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में सरकार की तमाम योजनाओं और प्रयासों के बावजूद कारोबार को अपेक्षित रफ्तार नहीं मिल रही है। खासकर टिहरी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और बागेश्वर जैसे पर्वतीय जिलों में क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात (सीडी रेशो) लगातार 40 फीसदी से नीचे बना हुआ है। इसका अर्थ है कि इन जिलों में बैंकिंग प्रणाली से ऋण लेकर व्यवसाय या कृषि जैसी गतिविधियों में निवेश बेहद कम हो रहा है।

राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की हालिया बैठक में यह स्थिति सामने आने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों और बैंकों को मिलकर निगरानी योग्य कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने खास तौर पर कृषि, पर्यटन और उद्यान क्षेत्रों से जुड़ी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है ताकि ग्रामीण व पहाड़ी इलाकों में आर्थिक गतिविधियां तेज हों और लोग बैंक ऋण का अधिक उपयोग करें।

सिर्फ दो पर्वतीय जिले कर रहे बेहतर प्रदर्शन
प्रदेश के केवल दो पर्वतीय जिले — उत्तरकाशी और चंपावत — ऐसे हैं जिनका सीडी रेशो 50 प्रतिशत से ऊपर है। इन जिलों में कृषि, बागवानी और पर्यटन गतिविधियों में बढ़ोतरी इसकी वजह मानी जा रही है। बाकी जिलों में कारोबार की धीमी रफ्तार, पलायन और आर्थिक अनिश्चितता के कारण लोग बैंक ऋण लेने से परहेज कर रहे हैं।

सबसे कमजोर जिले
पर्वतीय जिलों में सबसे कम सीडी रेशो बागेश्वर, पौड़ी और अल्मोड़ा का है — महज 28 प्रतिशत। यह आंकड़ा 2023 से सिर्फ एक प्रतिशत ही बेहतर हुआ है, लेकिन राज्य के औसत स्तर से काफी नीचे है।

मुख्य आंकड़े:
सीडी रेशो सबसे अधिक वाले जिले:

  • ऊधम सिंह नगर: 114%
  • चंपावत: 91%
  • हरिद्वार: 71%
  • नैनीताल: 54%
  • उत्तरकाशी: 54%

सीडी रेशो में पिछड़े पर्वतीय जिले:

  • टिहरी: 36%
  • पिथौरागढ़: 34%
  • रुद्रप्रयाग: 31%
  • अल्मोड़ा: 28%
  • पौड़ी: 28%
  • बागेश्वर: 28%

वित्त सचिव दिलीप जावलकर के अनुसार, जिला परामर्शदात्री समितियों (DCC) को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। इन समितियों के जरिए बैंक और विभागीय अधिकारी मिलकर यह तय करेंगे कि किस क्षेत्र में किस योजना के तहत लोगों को ऋण दिए जा सकते हैं और इसके लिए बाधाओं का समाधान कैसे हो।

यह स्थिति राज्य के आर्थिक असंतुलन और पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा की ओर भी इशारा करती है। यदि सरकार और बैंकिंग संस्थान समय रहते उचित कदम नहीं उठाते, तो यह रुझान पलायन और बेरोजगारी को और बढ़ा सकता है।


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