देहरादून के हर्रावाला में करीब 106 करोड़ की लागत से निर्मित सुपर स्पेशियलिटी कैंसर अस्पताल पिछले एक साल से सिर्फ एक इमारत बनकर खड़ा है। मरीजों के इलाज की उम्मीदें अब तक अधूरी हैं क्योंकि प्रदेश सरकार पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर अस्पताल को संचालित करने के लिए एक सक्षम ऑपरेटर नहीं खोज पाई है।
इस अस्पताल का निर्माण वर्ष 2020 में शुरू हुआ था और यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत केंद्र और राज्य सरकार के वित्तीय सहयोग से बना। यह अस्पताल 20403.49 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैला है और इसमें 300 बेड की क्षमता है। सरकार ने मार्च 2024 में इसे पीपीपी मोड पर देने का फैसला किया था, ताकि उपकरणों की खरीद, मानव संसाधन और संचालन का खर्च निजी साझेदार वहन कर सके।
हालांकि दिसंबर 2023 में हुए वैश्विक निवेशक सम्मेलन में सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र की कंपनियों को आमंत्रित किया था और दो कंपनियों ने रुचि भी दिखाई, लेकिन एक साल बीतने के बाद भी कोई संचालक तय नहीं हो सका। नतीजा यह है कि प्रदेश के कैंसर मरीजों को महंगे निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ रहा है।
सरकार का दावा है कि अस्पताल में रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, जांच, परामर्श और उच्च स्तरीय सर्जरी जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। लेकिन जब तक इसका संचालन शुरू नहीं होता, तब तक ये दावे सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं।
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि अस्पताल को शुरू करने की औपचारिकताएं जारी हैं। साथ ही सरकार ने हरिद्वार स्थित मातृ एवं शिशु अस्पताल को भी पीपीपी मोड पर संचालित करने का निर्णय लिया है, जिसे जल्द शुरू किया जाएगा।
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